Dec 25, 2015

कवने खोंतवा में लुकाइलु

 कवने खोंतवा में लुकाइलु / भोलानाथ गहमरी

 कवने खोंतवा में लुकाइलु, आहि रे बालम चिरई,
वन-वन ढूँढलीं, दर-दर ढूँढलीं, ढूँढलीं नदी के तीरे,
साँझ के ढूँढलीं, रात के ढूँढलीं, ढूँढलीं होत फजीरे,
मन में ढूँढलीं, जन में ढूँढलीं, ढूँढलीं बीच बजारे,
हिया-हिया में पैंइठ के ढूँढलीं, ढूँढलीं विरह के मारे,
कौने सुगना पे लुभइलु, आहि रे बालम चिरंई……….

गीत के हम हर कड़ी से पूछलीं, पूछलीं राग मिलन से,
छन्द-छन्द, लय ताल से पूछलीं, पूछलीं सुर के मन से,
किरण-किरण से जाके पूछलीं, पूछलीं नील गगन से,
धरती और पाताल से पूछलीं, पूछलीं मस्त पवन से,
कौने अंतरे में समइलु, आहि रे बालम चिरई…………

मन्दिर से मस्जिद तक देखलीं, गिरजा से गुरद्वारा,
गीता और कुरान में देखलीं तीरथ सारा,
पण्डित से मुल्ला तक देखलीं, देखलीं घरे कसाई,
सागरी उमरिया छछनत जियरा, कबले तोहके पाई,
कौनी बतिया पर कोहइलु, आहि रे बालम चिंरई……


ग्राम्य चित्रण

ग्राम्य चित्रण / भोलानाथ गहमरी

काँट कुश से भरल डगरिया, धरीं बचा के पाँव रे
माटी ऊपर, छानी छप्पर, उहे हामरो गाँव रे…..

चारों ओर सुहावन लागे, निर्मल ताल-तलैया,
अमवा के डाली पर बैठल, गावे गीत कोइलिया,
थकल-बटोही पल-भर बैठे, आ बगिया के छाँव रे

सनन सनन सन बहे बायरिया, चरर-मरर बंसवरिया,
घरर-घरर-घर मथनी बोले, दहिया के कंह्तरिया,
साँझ सवेरे गइया बोले, बछरू बोले माँव रे…….

चान-सुरुज जिनकर रखवारा, माटी जिनकर थाती,
लहरे खेतन, बीच फसलीया, देख के लहरे छाती,
घर-घर सबकर भूख मिटावे, नाहीं चाहे नाव रे…….

निकसे पनिया के पनिघटवा, घूँघट काढ़ गुजरिया,
मथवा पर धई चले डगरिया, दूई-दूई भरल गगरिया,
सुधिया आवे जो नन्द गाँव के रोवे केतने साँवरे……

तन कोइला मन हीरा चमके, चमके कलश पिरितिया,
सरल स्वाभाव सनेही जिनकर, अमृत बासलि बतिया,
नेह भरल निस कपट गगरिया, छलके ठांवे-ठांव रे


Dec 18, 2015

भोजपुरी के शेक्सपियर

 भोजपुरी के शेक्सपियर

मेहनत रेत पर लिखी इबारत नही होती; जिसे हवा का एक झोंका या पानी का एक बुलबुला मिटा दे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी भिखारी ठाकुर ऐसे ही महापुरुष थे, जिन्हें भोजपुरी साहित्य का शेक्सपियर कहा जाता है। 

भिखारी ठाकुर को साहित्य की सभी विधाओं- संगीत, नाटक, गीत, काव्य, रंगमंच व नृत्य पर समान अधिकार था। शुरुआती जीवन में रामायण मंडली के साथ काम करने के कारण उनके काव्य चौपाइयों में हैं।  इस महान विभूति का जन्म सारण में 18 दिसंबर, 1887 को साधारण परिवार में हुआ था। इसलिए उनका प्रारंभिक जीवन घोर गरीबी में बीता। भिखारी ठाकुर का संपूर्ण साहित्य सामाजिक समस्याओं पर केंद्रित है। 

चाहे आप्रवसान की समस्या हो या आर्थिक तंगी या फिर पारिवारिक कलह- सब पर उन्होंने तंज कसे। जिस महिला अधिकारिता और महिला सशक्तिकरण की बात आज की जा रही है, उसे भिखारी ठाकुर ने अपने नाटकों में काफी पहले ही उठाया था। बेटी वियोग, भाई विरोध, विदेसिया, गबरघिचोर, ननद-भौजाई, गंगा स्नान व राधेश्याम विहार  में स्त्री-प्रश्न को प्रमुखता से उठाया गया है। 

विधवा विलाप  में विधवाओं के प्रति सामाजिक नजरिये को दर्शाया गया है, जबकि गबरघिचोर  में नाजायज बच्चे का प्रश्न है। बेटी बेचवा  में अधेड़ दूल्हे से शादी की बात है, तो विदेसिया  में प्रवासी बिहारी की कथा। दुर्भाग्य है कि आज भी हजारों की संख्या में बिहारी मजदूर पलायन को बाध्य हैं, और हजारों महिलाएं अपने पति का परदेश से लौटने की राह तकती रहती हैं।
साभार हिदुस्तान