Dec 18, 2015

भोजपुरी के शेक्सपियर

 भोजपुरी के शेक्सपियर

मेहनत रेत पर लिखी इबारत नही होती; जिसे हवा का एक झोंका या पानी का एक बुलबुला मिटा दे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी भिखारी ठाकुर ऐसे ही महापुरुष थे, जिन्हें भोजपुरी साहित्य का शेक्सपियर कहा जाता है। 

भिखारी ठाकुर को साहित्य की सभी विधाओं- संगीत, नाटक, गीत, काव्य, रंगमंच व नृत्य पर समान अधिकार था। शुरुआती जीवन में रामायण मंडली के साथ काम करने के कारण उनके काव्य चौपाइयों में हैं।  इस महान विभूति का जन्म सारण में 18 दिसंबर, 1887 को साधारण परिवार में हुआ था। इसलिए उनका प्रारंभिक जीवन घोर गरीबी में बीता। भिखारी ठाकुर का संपूर्ण साहित्य सामाजिक समस्याओं पर केंद्रित है। 

चाहे आप्रवसान की समस्या हो या आर्थिक तंगी या फिर पारिवारिक कलह- सब पर उन्होंने तंज कसे। जिस महिला अधिकारिता और महिला सशक्तिकरण की बात आज की जा रही है, उसे भिखारी ठाकुर ने अपने नाटकों में काफी पहले ही उठाया था। बेटी वियोग, भाई विरोध, विदेसिया, गबरघिचोर, ननद-भौजाई, गंगा स्नान व राधेश्याम विहार  में स्त्री-प्रश्न को प्रमुखता से उठाया गया है। 

विधवा विलाप  में विधवाओं के प्रति सामाजिक नजरिये को दर्शाया गया है, जबकि गबरघिचोर  में नाजायज बच्चे का प्रश्न है। बेटी बेचवा  में अधेड़ दूल्हे से शादी की बात है, तो विदेसिया  में प्रवासी बिहारी की कथा। दुर्भाग्य है कि आज भी हजारों की संख्या में बिहारी मजदूर पलायन को बाध्य हैं, और हजारों महिलाएं अपने पति का परदेश से लौटने की राह तकती रहती हैं।
साभार हिदुस्तान